महिला की योनि में होने वाले सामान्य परिवर्तन कौन से हैं
योनि में होने वाले सामान्य परिवर्तन
महिला की योनि में उम्र के साथ कई प्राकृतिक परिवर्तन होते हैं, जो हार्मोनल उतार-चढ़ाव, विशेष रूप से एस्ट्रोजन के स्तर में कमी के कारण होते हैं। ये परिवर्तन किशोरावस्था से लेकर रजोनिवृत्ति के बाद तक देखे जा सकते हैं, और इनका प्रभाव योनि के स्वास्थ्य और कार्यप्रणाली पर पड़ता हैl
उम्र के अनुसार योनि में परिवर्तन
20 से 29 वर्ष की आयु: इस उम्र में योनि पूरी तरह से विकसित होती है, और पेल्विक फ्लोर (श्रोणि तल) अच्छी स्थिति में होता है . हालांकि, गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग प्राकृतिक चिकनाई को प्रभावित कर सकता है, जिससे योनि में सूखापन हो सकता है l इस दौरान लेबिया (योनि के होंठ) का विकास जारी रह सकता है, और योनि के नीचे की चर्बी उम्र बढ़ने के साथ घट सकती हैl
30 से 39 वर्ष की आयु: इस दशक में महिलाएं अक्सर यौन रूप से सक्रिय होती हैं और गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग कर सकती हैं, जिससे योनि में सूखापन बढ़ सकता हैl गर्भावस्था का भी योनि और वल्वा पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे वैरिकोज वेन्स (बढ़ी हुई नसें) और वल्वा के रंग में बदलाव हो सकता है l कीगल एक्सरसाइज इस उम्र में पेल्विक फ्लोर को मजबूत रखने में मदद करती है l
40 से 49 वर्ष की आयु: इस अवधि में महिलाएं अक्सर पेरिमेनोपॉज़ल (रजोनिवृत्ति के करीब) या रजोनिवृत्ति से गुजर रही होती हैं, जिससे एस्ट्रोजन का स्तर कम होने लगता है l एस्ट्रोजन की कमी से योनि में सूखापन, लचीलेपन में कमी, और गुप्तांग के बाल पतले होने लगते हैं l
50 वर्ष की आयु के बाद (रजोनिवृत्ति): रजोनिवृत्ति के बाद, एस्ट्रोजन का स्तर काफी कम हो जाता है, जिससे योनि में सबसे अधिक परिवर्तन होते हैं l वल्वा पतला हो जाता है, लचीलेपन में कमी आती है, और योनि में गंभीर सूखापन हो सकता है, जिससे यौन संबंध असहज या दर्दनाक हो सकते हैं l योनि की दीवारें पतली और कम लोचदार हो जाती हैं, और योनि का पीएच अधिक क्षारीय हो जाता है l
योनि स्राव में परिवर्तन
योनि स्राव तरल, कोशिकाओं और बैक्टीरिया का मिश्रण होता है जो योनि को चिकनाई और सुरक्षा प्रदान करता है l इसकी संरचना, मात्रा और गुणवत्ता मासिक धर्म चक्र और प्रजनन विकास के चरणों के साथ बदलती रहती है l
सामान्य योनि स्राव: यह आमतौर पर गंधरहित, साफ या सफेद रंग का होता है, जिसकी बनावट पेस्ट जैसी या अंडे की सफेदी जैसी हो सकती है l यह योनि को साफ और स्वस्थ रखने में मदद करता है l ओव्यूलेशन, गर्भावस्था, यौन उत्तेजना और गर्भनिरोधक के उपयोग के दौरान इसकी मात्रा बढ़ सकती है l
असामान्य योनि स्राव: रंग, गाढ़ापन, मात्रा या गंध में अचानक बदलाव असामान्य स्राव का संकेत हो सकता है l यह पीले, हरे, या भूरे रंग का हो सकता है, जिसमें दुर्गंध या दही जैसी बनावट हो सकती है l इसके साथ खुजली, जलन या पेल्विक दर्द भी हो सकता है l
असामान्य योनि स्राव के कारण
संक्रमण:
बैक्टीरियल वेजिनोसिस (BV): योनि में बैक्टीरिया के असंतुलन के कारण होता है, जिससे मछली जैसी गंध वाला पतला, भूरा या हरा स्राव हो सकता है l
यीस्ट संक्रमण (कैंडिडिआसिस): कैंडिडा नामक फंगस की अतिवृद्धि के कारण होता है, जिससे गाढ़ा, सफेद, दही जैसा स्राव और खुजली हो सकती है l
ट्राइकोमोनिएसिस: एक परजीवी संक्रमण है जो यौन संपर्क से फैलता है, जिससे पीले-हरे, झागदार और दुर्गंधयुक्त स्राव हो सकता है
क्लैमाइडिया और गोनोरिया: ये यौन संचारित संक्रमण भी योनि स्राव का कारण बन सकते हैं, हालांकि अक्सर कोई लक्षण नहीं होते हैं l
हार्मोनल परिवर्तन: गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोनल उतार-चढ़ाव योनि स्राव को प्रभावित कर सकते हैं l
एलर्जी या जलन: सुगंधित साबुन, फेमिनिन उत्पादों, या तंग कपड़ों से योनि में जलन हो सकती है l
अन्य कारण: मधुमेह, गर्भाशय ग्रीवा के पॉलीप्स, गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, या योनि में कोई बाहरी वस्तु भी असामान्य स्राव का कारण बन सकती है l
प्रभावों का सारांश
योनि में होने वाले इन परिवर्तनों के कई प्रभाव हो सकते हैं:
शारीरिक असुविधा: सूखापन, खुजली, जलन, और संभोग के दौरान दर्द l
संक्रमण का खतरा: रजोनिवृत्ति के बाद योनि का पीएच बदलने से संक्रमणों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है l
यौन स्वास्थ्य पर प्रभाव: योनि में सूखापन और लचीलेपन में कमी यौन संबंध को असहज बना सकती है, जिससे यौन इच्छा में कमी आ सकती है l
भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: शारीरिक परिवर्तनों और असुविधा के कारण महिलाओं के आत्म-सम्मान और जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है l
गर्भावस्था
गर्भावस्था के दौरान, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ता है, जिससे योनि स्राव की मात्रा में वृद्धि होती है। सामान्यतः यह स्राव सफेद या हल्का ग्रे होता है और इसमें कोई दुर्गंध नहीं होती। गर्भावस्था में योनि का पीएच भी अप्रसव के बाद
प्रसव के बाद, महिलाओं को छह सप्ताह तक रक्तस्राव का अनुभव होता है, जिसे लोचिया कहा जाता है। पहले कुछ दिनों में रक्त चमकीला लाल होता है और फिर धीरे-धीरे हल्का हो जाता है. इसके अलावा, प्रसव के कारण योनि में दर्द और सूजन भी हो सकती है।
रजोनिवृत्ति : रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन का स्तर गिरता है, जिससे योनि की दीवारें पतली और कम लोचदार हो जाती हैं। इससे सूखापन और असुविधा महसूस हो सकती है। इस अवस्था में योनि का पीएच स्तर भी बढ़कर 6.0-7.5 तक पहुंच सकता है.
इन परिवर्तनों को समझना महत्वपूर्ण होता है ताकि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकें और किसी भी असामान्य लक्षण पर ध्यान दे सकें।