बारिश की रहस्यमयी गुड़िया – फिर से मिली वही लड़की
भाग 2
दो दिन बीत चुके थे, लेकिन सूरज का मन अब भी बेचैन था। बारिश वाली उस रात के बाद से उसका सारा ध्यान उसी गुड़िया और उस अजनबी लड़की पर अटका हुआ था। दिन में वह काम पर जाता, पर दिमाग में वही मुस्कान घूमती रहती — नीली फ्रॉक में सजी वह गुड़िया, और वही मुस्कान, जो उस लड़की के चेहरे पर भी थी।
उस शाम सूरज अपने ऑफिस से लौट रहा था। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था और आसमान में हल्की नारंगी आभा तैर रही थी। हवा में ठंडक थी, पर उसके मन में एक अजीब सी गर्मी, एक बेचैनी थी। उसने सोचा घर जाते हुए कुछ ज़रूरी सामान ले ले। वह गाड़ी रोककर पास की दुकान की ओर बढ़ा। तभी उसने सुना — एक कार उसके पास आकर रुकी। सफेद, चमकदार कार।
सूरज ने अनजाने में उसकी ओर देखा — और फिर जैसे उसकी सांसें थम गईं।
वही लड़की। वही चेहरा। वही हल्के भीगे बाल, वही गहरी आँखें। उसने एक दूसरी दुकान से कुछ खरीदा और तेजी से अपनी कार में बैठ गई। सूरज उसे देखता ही रह गया —वही उभरे हुए स्तन, वही चाल, उसका अंदाज़, सब कुछ वैसा ही था जैसे बारिश वाली रात में।
लेकिन इस बार कुछ अलग था — सूरज ने उसका चेहरा साफ़-साफ़ देखा। वह उतनी ही खूबसूरत थी जितना उसने कल्पना की थी, पर उसमें कुछ और था — एक रहस्य, एक ठंडी सी चमक। जैसे वह किसी और दुनिया की हो।
सूरज का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे लगा जैसे उस लड़की की आँखें एक पल के लिए उसकी आँखों से मिली थीं… जैसे उसने उसे पहचान लिया हो।
कार तेज़ी से चली गई, और सड़क पर बस हवा का एक झोंका रह गया। सूरज बहुत देर तक उसी जगह खड़ा रहा। जब वह होश में आया, तो उसे अहसास हुआ कि उसकी हथेलियाँ पसीने से भीग चुकी हैं।
वह जल्दी से घर लौटा। दरवाज़ा खोलते ही उसकी नज़र सीधे शेल्फ पर गई — जहाँ वह गुड़िया रखी थी। वही नीली फ्रॉक, वही मुस्कान।
सूरज ने धीमे कदमों से आगे बढ़कर गुड़िया को उठाया। उसकी आँखें गुड़िया की आँखों में गड़ी रहीं। “तुम्हें पता है…” उसने धीरे से कहा, “…मैंने फिर से उस खूबसूरत लड़की को देखा। वही, बिल्कुल वही।”
कमरा अचानक बहुत शांत हो गया। दीवार की घड़ी की टिक-टिक और तेज़ सुनाई देने लगी।
“तुम्हें पता है, जब मैंने उसे देखा तो मैं पागल हो गया। मेरे अंदर एक असीमित सेक्स इच्छा जाग उठी। उसका शरीर, स्तन, नितंब मुझे पागल कर देते हैं। मैं उसे हमेशा के लिए चाहता हूँ,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक पागलपन की झलक। उसी क्षण उसे लगा जैसे गुड़िया की मुस्कान और चौड़ी हो गई और वह उसकी बातों पर प्रतिक्रिया दे रही हो l
यह सचमुच अजीब था — कुछ ही दिनों में सूरज ने उस गुड़िया के साथ ऐसा रिश्ता बना लिया था, मानो वह उसकी कोई जीवित दोस्त हो, कोई अपना। वह उससे बातें करता, अपने दिन की बातें सुनाता, अपनी उदासी, अपनी हँसी सब कुछ बाँट देता। अजीब बात यह थी कि गुड़िया ने कभी भी कोई हरकत नहीं की, न कभी पलक झपकाई, फिर भी उसे लगता जैसे वह उसे समझ रही हो, जैसे उसकी ख़ामोशी में कोई जवाब छिपा हो।
जैसे ही रात हुई और सूरज बिस्तर पर लेट गया, उस लड़की का शरीर फिर से उसकी आँखों में घूमने लगा। उसके उछलते स्तन, हिलते हुए नितंब, लाल गीले होंठ, उसका लिंग फिर से उठने लगा l सूरज ने लिंग बाहर निकाला और उसके साथ आनंद लेने लगा।
असीमित आनंद के बाद जब उसने अपनी आंखें बंद कीं, तो फिर वही आवाज आई, “आओ, मुझे दो, मैं लंबे समय से तुम्हारे शुक्राणुओं का इंतजार कर रही हूं। मुझे दो।”
सूरज की आँखें झटके से खुलीं। उसने चारों ओर देखा। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। “वह सपना नहीं था, वह सपना नहीं था। मुझे यकीन है।…. नहीं…l” उसने फुसफुसाया।
“नीलू कुछ बोलो। क्या तुमने कुछ सुना?” सूरज ने गुड़िया को देखते हुए कहा।
कमरा बहुत शांत था। बेचैन सूरज फिर से सोने की कोशिश करने लगा।