बारिश की रहस्यमयी गुड़िया – नीलू की गूँजती आवाज़
भाग 3
सुबह की हल्की रोशनी परदे से झाँक रही थी। सूरज ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं — उसका सिर भारी था, शरीर थका हुआ। पिछली रात उसे नींद ही नहीं आई थी। जब भी उसने आँखें बंद कीं, किसी की धीमी फुसफुसाहट उसके कानों में गूँज उठती थी।
वह उठकर बैठ गया और सामने शेल्फ की ओर देखा। गुड़िया वहीं थी — मुस्कुराती हुई, जैसे रात कुछ हुआ ही न हो। कमरा बिलकुल वैसा ही था, लेकिन माहौल में कुछ बदला हुआ-सा लग रहा था। हवा ठहरी हुई थी, फिर भी कमरे में कोई अनजाना कंपन महसूस हो रहा था।
सूरज ने धीरे से कहा, “वो आवाज़ असली थी… सपना नहीं। वो किसी असली लड़की की आवाज़ थी।”
उसने गहरी साँस ली और फिर गुड़िया की ओर देखा। “आख़िर तुम यहाँ आई कैसे? कौन भूल सकता है तुम्हें, और क्यों?” उसके दिमाग़ में बारिश वाली शाम की छवि घूम गई — भीगी सड़कें, धुंधली रोशनी, और कार की छत पर रखी वह रहस्यमयी गुड़िया।
“यह गुड़िया एक साधारण खिलौना नहीं है,” उसने खुद से फुसफुसाया।
उसने धीरे से गुड़िया को उठाया। “नीलू… नीलू, मुझे बताओ, तुम्हारा रहस्य क्या है? तुम कौन हो, और मुझसे क्या चाहती हो? अब तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो।”
जैसे ही उसने ये शब्द कहे, हवा का एक तेज़ झोंका खिड़की से भीतर आया। कमरे की बत्तियाँ हल्की झिलमिलाईं। गुड़िया के रेशमी बाल उड़ने लगे। उसकी आँखें हल्के नीले रंग में चमक उठीं, और कमरे में वही आकर्षक सुगंध फैल गई — वही जो पहली बार उसने महसूस की थी।
सूरज ने भय और आश्चर्य के बीच खुद को जकड़ा महसूस किया। तभी एक धीमी, मधुर आवाज़ कमरे में गूँज उठी — मानो दीवारों से निकल रही हो।
“मुझसे मत डरो, सूरज,” वह आवाज़ बोली, “मैं भी तुम्हारी दोस्त हूँ… और मुझे नीलू नाम बहुत पसंद है। धन्यवाद।”
सूरज का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह झटके से बिस्तर पर बैठ गया। “नीलू… तुम बोल सकती हो? क्या ये सच है या मैं पागल हो गया हूँ?”
गुड़िया की मुस्कान और गहरी हो गई। “सब कुछ सच है, सूरज,” उसने शांत स्वर में कहा, “तुम्हें मेरी ज़रूरत है, और मुझे तुम्हारी। हम एक-दूसरे को पूरा कर सकते हैं।”
सूरज की आँखों में आश्चर्य और उम्मीद चमक उठी। “नीलू, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? बस बताओ, मुझे खुशी होगी।”
गुड़िया की आँखें पल भर के लिए लाल आभा में चमक उठीं। “अगर तुम मेरे लिए एक काम करोगे,” उसने कहा, “तो मैं तुम्हारा सपना सच कर दूँगी। मैं उस बारिश वाली लड़की से तुम्हारी मुलाकात करा सकती हूँ।”
सूरज का चेहरा खुशी से दमक उठा। उसका दिल जैसे एक पल के लिए उड़ गया। “क्या सच में, नीलू? क्या तुम ऐसा कर सकती हो?”
“हाँ,” नीलू की आवाज़ अब गहरी और रहस्यमयी थी, “मैं वह सब कुछ कर सकती हूँ जो तुम चाहो… लेकिन पहले, तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी।”
सूरज की साँसें थम-सी गईं। वह हल्का झुककर बोला —
“ठीक है, नीलू… पहले अपनी मांग बताओ।”
गुड़िया की मुस्कान अब वैसी नहीं थी। उसमें कुछ जीवित, कुछ भयावह, और कुछ अनकहा था — जैसे उसकी आँखों के भीतर कोई परछाई हिल रही हो।
कुछ पल सन्नाटा रहा। फिर नीलू की आवाज़ धीमे से कमरे में गूँज उठी, कोमल लेकिन आदेश जैसी —
“सूरज, तुम्हें मेरे बारे में कुछ लिखना होगा। मेरे लिए कुछ शब्द। लेकिन ध्यान रखना — यह कोई साधारण लेखन नहीं होगा।”
सूरज ने चौंककर पूछा, “क्या मतलब?”
“सब दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद कर दो,” नीलू बोली, “कमरे में सिर्फ़ एक मोमबत्ती जलाओ। मैं चाहती हूँ कि वह रोशनी मेरे चेहरे और शरीर के सिर्फ़ एक हिस्से पर पड़े — आधा उजाला, आधा अँधेरा। तब तुम बैठो और मेरे बारे में लिखो। तुम मेरे शरीर, मेरी आँखों, मेरे स्पर्श… किसी भी हिस्से के बारे में लिखने के लिए स्वतंत्र हो।”
सूरज के हाथ काँप गए। उसका गला सूख गया।
“नीलू… तुम मुझसे यह क्या चाहती हो?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
नीलू की मुस्कान लौट आई — इस बार और रहस्यमयी।
“सिर्फ़ सच्चाई, सूरज। जो तुम देख रहे हो, वही लिखो। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे शब्दों में मैं ज़िंदा हो जाऊँ।”
सूरज ने निगलते हुए कहा, “लेकिन… मैंने कभी किसी लड़की के बारे में नहीं लिखा। मुझे नहीं पता कि तुम्हारे बारे में क्या कहूँ।”
गुड़िया की हँसी कमरे में गूँज उठी — मधुर, पर अजीब तरह की ठंडी।
“तो कल्पना करो,” नीलू फुसफुसाई, “कि वह बारिश वाली लड़की मेरी जगह बैठी है। वही जिसे तुम भूल नहीं पा रहे।”
सूरज का चेहरा बदल गया। उसके दिल में एक लहर दौड़ गई।
“बारिश वाली लड़की…” उसने बुदबुदाया।
नीलू की आवाज़ में अब एक सम्मोहन था,
“हाँ, सूरज। वही लड़की। वही भीगे बाल, वही आँखें। अब अपनी कलम उठाओ… और लिखो।”
सूरज जैसे किसी जादू में बँध गया। उसने खिड़कियाँ बंद कीं, दरवाज़ा लगाया, और मोमबत्ती जला दी। कमरे में एक नर्म, पीली रोशनी फैली। वह रोशनी गुड़िया — या शायद नीलू — के चेहरे के एक हिस्से पर पड़ी। दूसरा हिस्सा छाया में खोया हुआ था।
वातावरण में हल्की सी खुशबू तैरने लगी, वही पुरानी, नशीली सी गंध। सूरज मेज़ के पास बैठ गया, काग़ज़ और पेन उठाया और लिखना शुरू किया l