प्रेम और तड़प
प्रेम और तड़प की ये कविताएँ उन भावनाओं को शब्द देती हैं, जिन्हें अक्सर दिल में दबा लिया जाता है। यहाँ आपको अधूरी मोहब्बत, इंतज़ार, विरह और आत्मा की पुकार पर आधारित रचनाएँ मिलेंगी — कभी चुप्पी में, कभी आँसुओं में। हर कविता एक कहानी है, जो दिल से निकली है और दिल तक पहुँचना चाहती है। पढ़िए, महसूस कीजिए, और उस ख़ामोशी को समझिए जो प्रेम में सबसे ज़्यादा बोलती है।
बेहतर की हकदार
मैं तुझे चाहता था — पूरे दिल से,
पर जानता था, तू उससे बेहतर की हकदार है।
तेरे ख्वाब ऊँचे थे, मेरी ज़मीन ठंडी,
मैं तेरा आसमान नहीं बन सका।
तेरे लिए पीछे हटना ही मेरा प्रेम था,
तू मुस्कुराए — यही मेरी जीत होती।
मैं हार गया, पर तुझे टूटने नहीं दिया,
तेरे आँसू मेरी चुप्पी में समा गए।
एक दिन तू समझेगी, शायद देर से,
कि मेरा जाना भी तुझसे मोहब्बत ही थी।
एक ख़ामोश इक़रार
वो चाहता था मुझे… पर उतना नहीं, जितना मैं चाहती थी,
उसकी मोहब्बत गहरी नहीं — बस आदत-सी थी शायद।
मैंने हर धड़कन में उसे पनाह दी थी इबादत की तरह,
और वो मुझे सिर्फ एक खूबसूरत लम्हे की तरह देखता रहा।
मैंने अपना पूरा दिल उसके सामने रख दिया था एक दिन,
मगर वो मुझे वो एक लफ़्ज़ भी न दे सका — जिसकी मुझे इंतज़ार था।
उसकी ख़ामोशी ने साबित कर दिया — मोहब्बत एक तरफ़ा भी होती है,
और दिल टूटने की आवाज़ें सिर्फ़ अंदर ही सुनाई देती हैं।
अब भी उसकी याद आती है — पर शिकायत नहीं, बस एक खालीपन है,
क्योंकि मोहब्बत अधूरी हो जाए… तब भी मिटती नहीं — बस खामोश हो जाती है।
एक मौन त्याग
मैंने उसे चाहा था… हर सांस, हर धड़कन के पार तक,
पर मुझे मालूम था — मैं उसकी ज़िंदगी का मुकम्मल सफर नहीं हूँ।
वो रानी थी सपनों की, उजाले जैसी पवित्र थी,
और मैं बस अधूरा आसमान… जिसके सितारे भी टूटा करते हैं।
वो मुझसे एक लफ़्ज़ सुनना चाहती थी — इकरार का,
पर मैं खामोश रहा… क्योंकि प्यार सिर्फ़ पाना नहीं, बचाना भी होता है।
मैंने उसे ठुकराया नहीं — मैंने उसे उससे बेहतर ज़िंदगी के लिए आज़ाद किया,
ताकि वह एक दिन मुस्कुराते हुए कह सके — “शुक्र है… मैं वहीं नहीं रुकी थी।”
शायद वो आज मुझे गलत समझती है… पर डरता नहीं मैं,
क्योंकि जिस दिन उसे सच्चाई समझ आएगी — वो जानेगी…
कि मेरी मोहब्बत कम नहीं थी — बस उसकी इज़्ज़त उससे बड़ी थी।
सपनों की चिट्ठी
रात की चुप्पी में तुझसे बातें करता हूँ,
तेरे ख्यालों को चिट्ठी बना भेजता हूँ।
हर सपना तुझसे मिलने की कोशिश है,
हर नींद एक अधूरी कहानी।
तेरी मुस्कान की रोशनी में जीता हूँ,
तेरे बिना सब धुंधला सा लगता है।
तू पास नहीं, फिर भी सबसे पास है,
जैसे हवा — महसूस होती है, दिखती नहीं।
तेरे इंतज़ार में उम्र बीत जाए,
पर तुझसे मोहब्बत कभी कम न हो।
मैं रह जाऊँ या खो जाऊँ?
तेरी आँखों में खुद को देखती हूँ,
पर डरती हूँ — कहीं खुद को भूल न जाऊँ।
तेरी बातों में मेरा नाम कम होता जा रहा है,
और तेरा असर ज़्यादा।
मैं तुझसे प्यार करती हूँ,
पर क्या खुद से भी करती हूँ?
हर दिन तेरे लिए जीती हूँ,
पर मेरी साँसें अब मेरी नहीं लगतीं।
अगर तुझमें खो गई, तो मैं कहाँ रहूँगी?
मोहब्बत है — पर मैं भी हूँ।
बिछड़ना
तेरे जाने के बाद, सब कुछ ठहर गया,
घड़ी की सुइयाँ भी तेरा पूछती हैं।
खिड़की से आती हवा भी उदास है,
जैसे तुझसे मिलने की उम्मीद छोड़ चुकी हो।
मैं हर रोज़ तेरा नाम लिखता हूँ धुंध में,
और हर शाम उसे आँसू से मिटा देता हूँ।
तू पास नहीं, फिर भी हर जगह है,
तेरे बिना ये शहर भी अनजान लगता है।
बिछड़ना आसान नहीं था,
पर जीना उससे भी मुश्किल है।
तेरे साए में मैं
तू पास आता है, और मैं खुद से दूर हो जाती हूँ,
तेरे साए में मेरी पहचान धुंधली पड़ जाती है।
तेरी पसंद मेरी आदत बन गई है,
तेरी ख़ामोशी मेरी भाषा।
मैं तुझमें घुलती जा रही हूँ,
जैसे रंग पानी में — सुंदर, पर बेनाम।
कभी सोचती हूँ, क्या तू मुझे वैसे ही चाहेगा,
अगर मैं सिर्फ़ ‘मैं’ रहूँ?
मोहब्बत में खोना आसान है,
पर खुद को बचाना ज़रूरी।
मैं जानता था
मैंने तुझे चाहा था, हर साँस की तरह,
पर तुझे वो नहीं दे सका, जो तू चाहती थी।
तेरे ख्वाब बड़े थे, तेरी उड़ान ऊँची,
और मैं — बस एक ठहरी हुई शाम सा था।
तेरी आँखों में जो उजाला था,
मैं उसे धुंधला नहीं करना चाहता था।
इसलिए चुपचाप चला गया,
तेरे बिना, पर तेरे लिए।
एक दिन तू समझेगी शायद,
कि मेरा जाना भी तुझसे मोहब्बत ही थी।