गुड़िया की पहली इच्छा- एक प्यारी कविता
भाग 4
सूरज मेज़ के सामने बैठा था। मोमबत्ती की लौ हल्के-हल्के काँप रही थी, और उसके पीछे दीवार पर नीलू की परछाई अजीब तरीक़े से हिल रही थी — जैसे वो साँस ले रही हो। कमरे में नीरवता थी; सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक और काग़ज़ पर कलम की हल्की सरसराहट सुनाई दे रही थी।
वह कुछ देर तक गुड़िया और मोमबत्ती को देखता रहा — फिर धीरे से लिखना शुरू किया।
“वह मेरे सामने बैठी थी,” उसने लिखा,
“उसके लंबे, गीले बाल कंधों पर बिखरे हुए थे। मोमबत्ती की लौ उसकी लटों में सुनहरी झिलमिलाहट भर रही थी। उसकी आँखों में एक अनकहा रहस्य था, और उसके होंठ किसी भावुक चुंबन की प्रतीक्षा में थे । उसकी साँसें गर्म थीं, तेज़ थीं, उसकी सांसों के साथ उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। उसका ब्लाउज अधिक से अधिक तंग होता जा रहा था। शायद उसके स्तन भर रहे थे और कठोर हो रहे थे। धीरे-धीरे निप्पलों में कुछ तीखापन आने लगा था। मैं उसे चुपचाप देख रहा था। तभी एक हवा के झोंके ने उसकी स्कर्ट को उड़ा दिया और उसका सफेद अंडरवियर उजागर हो गया। यह तंग था, बीच में योनि की कुछ छाया थी।
यह सब मेरी बेचैनी बढ़ा रहा था। लेकिन मेरी कलम अभी भी लिख रही थी। मुझे नहीं पता अगला सही कदम क्या है, बस इतना जानता हूँ कि मैं अब इस क्षण से बाहर नहीं आना चाहता।”
सूरज ने कलम नीचे रखी और एक गहरी साँस ली।
तभी उसने वह आवाज़ सुनी — कोमल, मधुर और लगभग मानव जैसी।
“धन्यवाद, सूरज…”
वह चौंक गया। आवाज़ गुड़िया की दिशा से आई थी।
“तुमने मुझे फिर से जीवित महसूस कराया,” नीलू ने कहा।
अब उसकी आवाज़ में वो यांत्रिकपन नहीं था; वह एक असली लड़की की तरह बोल रही थी। सूरज धीरे-धीरे उसकी ओर देखने लगा। उसकी नज़रें गुड़िया के चेहरे पर टिक गईं — और उसे लगा, जैसे वह किसी जानी-पहचानी शख्सियत को देख रहा हो… जैसे किसी खोए हुए इंसान की परछाई लौट आई हो।
नीलू मुस्कुराई।
“सूरज,” उसने धीरे से कहा, “क्या तुम आज शाम रेन गर्ल से मिलना चाहोगे?”
सूरज का चेहरा चमक उठा।
“हाँ… हाँ, मैं उससे मिलना चाहता हूँ!” उसने ऐसे कहा, जैसे कोई लम्बी नींद से अचानक जाग उठा हो। उसकी आँखों में फिर वही चाहत लौट आई थी जो पहली बारिश वाली रात में थी।
नीलू ने धीरे से कहा,
“आज शाम, ठीक छह बजे… वह तुम्हारे घर के बाहर बगीचे में आएगी। तुम उससे खुलकर बात कर सकते हो, लेकिन याद रखना — उससे कोई सवाल मत पूछना। उसे सवाल पसंद नहीं हैं।”
“क्यों?” सूरज के होंठों से स्वतः निकला, मगर नीलू अब चुप थी। उसकी मुस्कान फिर से जमी हुई लग रही थी, जैसे मोम की हो।
सूरज देर तक उसकी आँखों में देखता रहा, लेकिन अब वहाँ कोई हलचल नहीं थी। गुड़िया फिर से निर्जीव लग रही थी।
कमरे में सब कुछ सामान्य हो गया।
वह खिड़की तक गया और बगीचे की ओर देखा। शाम अभी दूर थी l
उसने मुस्कुराकर कहा, “रेन गर्ल… आज तुमसे ज़रूर मिलूँगा।”